एक अधूरी कविता

एक अधूरी कविता


poem hindi

पत्तों को गिरते देख,पेड़ से पूछ लिया,

“ये तो छोड़ चले तुम्हें, क्यूँ रूठ गये तुमसे ?”,

जवाब बड़ा ही उलझा सा आया,

कहा, “मेरे साथ थे तो हरे तो थे,

अब देखो कैसे मुरझाए हैं, फिर भी..

इस बात में गुरूर तो था,

पर विरह की वेदना भी थी,

दूसरे सवाल से कुछ आगे बढ़ी बात,

“क्या ये पत्ते वापस आते हैं,

यूँ चले जाने के बाद ?”

जवाब बड़ा सरल सा आता है,

“नहीं जनाब रंग बदल लेते हैं,

पर कोई वापस न आता है “,

इस ज़वाब में अधूरापन था,

और पत्तों के अहम का विवरण था,

सोचा तीसरा सवाल भी पूछ ही लूँ,

उलझी बातों को और टटोल लूँ,

“इन अनकही कहानियों का पता है किसी को ?”,

जवाब आया, “जी देखते सब हैं,

जानना सब चाहते हैं,

जिज्ञासा सब में है,

फ़िक्र किसी में नहीं है “,

इस जवाब में मायूसीयत थी,

और शायद इशारा इस बात की ओर,

की शांत नहीं है इस,

पेड़ के दिल का शोर,

मेरे पास अब सवाल नहीं हैं,

मैं अब शांत हूँ,

जवाब सारे नहीं हैं,

पर बेज़ुबान हूँ..

© 2025 Apurva Shrey